पति और दो बेटों के निधन के बाद पढ़ाई करना। वह भी अपने बच्चों के उम्र के साथ के लोगों के बीच में बैठकर परीक्षाएं पास करते-करते ग्रेजुएट होना। सरकारी नौकरी प्राप्त करना। दो बेटों और पति का निधन के बाद खुद और बेटियों तथा परिवार को संभालना। उसके बाद छोटी नौकरी से शुरुआत करते हुए परीक्षा देते देते क्लास टू की पोस्ट तक जाना। फिर राजनीति में आना पार्षद, विधायक बनना। उड़ीसा में मंत्री बनना फिर केंद्र में मंत्री बनना, झारखंड के राज्यपाल बनना।
हम अनुगामी उन पावों के,
आदर्श लिए जो बड़े चले...
बाधाएं जिन्हें डिगा न सकी,
जो संघर्षों में डटे रहे !
द्रौपदी मुर्मू जी पंचायत सदस्य से विधायक फिर मंत्री और राज्यपाल रह चुकी हैं.....राजनीतिक और प्रशासनिक अनुभव है..सामान्य परिवेश से संघर्ष कर आगे बढ़ी हैं उसका भी अनुभव है..कभी विवादों में नही रही..उनका जन्म उस संथाल वनवासी समुदाय में हुआ जिनका देश के आजादी में अहम योगदान रहा है..ऐसा समुदाय जिसे आज तक उचित प्रतिनिधित्व नही मिला..कर्ज उतारने का समय है ..ऐसे वनवासी संथाल की बेटी आज देश के सर्वोच्च पद पर आसीन होने जा रही है स्वागत करिये..