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Our Vision

सृष्टि के आधार रूप में स्त्री सदैव पुरुष की न केवल सहभागिनी रही है अपितु पथ-प्रदर्शक भी रही है। भारतीय शास्त्र परम्परा कहती है -

अहं केतुः अहं मूर्धा अहमुग्रा विवाचनी।
मनेदनु क्रतुं पतिः सेहानाया उपाचरेत्।।
( ऋग वेद मण्डल- 10, सूक्त- 159, मन्त्र-2)

मैं राष्ट्र की ध्वजा हूँ, मस्तिष्क हूँ, मैं तेजस्विनी हूँ। मेरे पति मेरे श्रेष्ठ कार्यों का अनुमोदन करते हैं, मेरी सन्तानें उत्तम हैं।

Our Mission

आज वैश्विक स्तर पर जिस प्रकार की गतिविधियाँ चल रही हैं, उनसे स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में युद्ध सम्भावित है। आज नहीं तो 5 वर्ष या 10 वर्ष बाद अनेक रूपों में युद्ध होगा ही। निरन्तर नैतिक पतन होने के कारण मर्यादाहीन इन युद्धों में अत्याचार, अनाचार, बलात्कार और अन्य अपराध अब परम्परा बन गए हैं। अब मात्र सती होने अथवा जौहर करने से काम नहीं चलेगा। माँ दुर्गा की भाँति शत्रु का वक्ष चीरकर अपना रक्षण करना होगा।
यदि कोई स्वयं मरकर अत्याचारों से बच भी गई तो कोई बहन, बेटी, बुआ, चाची, ताई इस बिभत्सता का शिकार होगी।

अतः सही दिशा में अध्ययन के साथ विशिष्ट अभ्यास के साथ जगद्जननी के समग्र स्वरूप को धारण कराना होगा।

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
उठो! जागो! अपने लक्ष्य को प्राप्त करो।