जगद्जननी : JagadJanani : " A Portal Dedicated To Our Sheroes "

सृष्टि के आधार रूप में स्त्री सदैव पुरुष की न केवल सहभागिनी रही है अपितु पथ-प्रदर्शक भी रही है। भारतीय शास्त्र परम्परा कहती है -

अहं केतुः अहं मूर्धा अहमुग्रा विवाचनी।
मनेदनु क्रतुं पतिः सेहानाया उपाचरेत्।।
( ऋग वेद मण्डल- 10, सूक्त- 159, मन्त्र-2)

मैं राष्ट्र की ध्वजा हूँ, मस्तिष्क हूँ, मैं तेजस्विनी हूँ। मेरे पति मेरे श्रेष्ठ कार्यों का अनुमोदन करते हैं, मेरी सन्तानें उत्तम हैं।

अर्थात
इस संसार में जो कुछ भी है उसके निर्माण, संचालन एवं विध्वंस में मातृशक्ति की भूमिका प्रमुख थी, आज भी है और भविष्य में भी रहेगी।

सदियों से मातृशक्ति ने अनेक रूपों में अपने सशक्त व्यक्तित्व एवं अपने आत्म सम्मान का परिचय दिया है। गार्गी, मैत्रेयी, लोपामुद्रा, सूर्या, सावित्रीबाई फुले, कादम्बिनी गांगुली, सरोजिनी नायडू, रानी गायडीलयु, लक्ष्मीबाई, लता मंगेशकर, पी टी उषा, पी वी सिंधु, मेरी कौम, ऋतु करिधल आदि अनेक नारियों ने राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर अपनी विशिष्ट पहचान बनाई है। सृजनात्मक शक्ति के रूप में मातृशक्ति का विराट व्यक्तित्व लक्ष्मी, दुर्गा, सरस्वती, काली के चरित्रों से उद्घाटित होता है।

जगद्जननी नारी ने विभिन्न संक्रमणकालीन परिस्थितियों में तथाकथित पुरुष प्रधान समाज में अपने आत्म सम्मान के साथ अद्भुत व्यक्तित्व का निर्माण किया है। वर्त्तमान में नारी यत्र तत्र शारीरिक, मानसिक रूप से प्रताड़ित दिखाई दे रही है। परंतु नारीशक्ति की जिजीविषा प्रत्येक गम्भीरतम परिस्थिति में साहस के साथ डटकर माँ भवानी के समान दुष्टों का संहार करने में समर्थ है।

आज वैश्विक स्तर पर जिस प्रकार की गतिविधियाँ चल रही हैं, उनसे स्पष्ट हो गया है कि भविष्य में युद्ध सम्भावित है। आज नहीं तो 5 वर्ष या 10 वर्ष बाद अनेक रूपों में युद्ध होगा ही। निरन्तर नैतिक पतन होने के कारण मर्यादाहीन इन युद्धों में अत्याचार, अनाचार, बलात्कार और अन्य अपराध अब परम्परा बन गए हैं। अब मात्र सती होने अथवा जौहर करने से काम नहीं चलेगा। माँ दुर्गा की भाँति शत्रु का वक्ष चीरकर अपना रक्षण करना होगा।
यदि कोई स्वयं मरकर अत्याचारों से बच भी गई तो कोई बहन, बेटी, बुआ, चाची, ताई इस बिभत्सता का शिकार होगी।

अतः सही दिशा में अध्ययन के साथ विशिष्ट अभ्यास के साथ जगद्जननी के समग्र स्वरूप को धारण कराना होगा।

उत्तिष्ठत जाग्रत प्राप्य वरान्निबोधत
उठो! जागो! अपने लक्ष्य को प्राप्त करो।